कविता-पहचान मनुज

 

।। कविता ।।

।। पहचान मनुज ।।


पग बढ़ा “बढ़ा चल” नर सुजान,

चल अभय धैर्य धरि बुद्धिमान।।

स्वयं की शक्ती स्वयं जान मनुज,

स्वयं को स्वयं कुछ पहचान मनुज।।


मत भटक अटक मत कंटक लखि,

जीवन क्या है अति प्रश्न जटिल।।

चल सजग अभय नित नित्य मनुज,

स्वयं को स्वयं कुछ पहचान मनुज।।


तुझमें ब्रह्मा तुझमें विष्णू तुझमें शंकर,

तुझमें है तेज सूर्य जैसा तुझमें गिरिधर।।

स्वयं को स्वयं कर स्वयं सिद्धि मनुज,

स्वयं को स्वयं कुछ पहचान मनुज।।


है तुझमें दिव्य शक्ति संचित तुझमें रे!नर,

तू महावीर तू दानवीर तू श्रेष्ठ प्रखर।।

हैं तुझमें संभावना अनत सुन सुप्त मनुज,

स्वयं को स्वयं कुछ पहचान मनुज।।


संशय दुविधा को त्याग त्याग तू त्याग,

चल जाग जाग उठ जाग जाग तू जाग।।

अपने अंदर स्वयं झाँक झाँक स्वयं झाँक मनुज,

स्वयं को स्वयं कुछ पहचान मनुज।।


रण कुशल धीर गम्भीर वीर तू महावीर,

तू त्याग क्लेश भय द्वेष भूख तजि पीर।।

मन के घोड़े स्वयं हाँक हाँक स्वयं हाँक मनुज,

स्वयं को स्वयं कुछ पहचान मनुज।।


स्वयं साहस संयम त्याग परख,

अंदर बैठा छल द्वेष और अनुराग परख।।

मेधा विवेक बल परखि मनुज,

स्वयं को स्वयं कुछ पहचान मनुज।।


उठ शक्तिसहित नर तेजवंत तू फूँक प्राण,

उठ महावीर स्वयं शक्ति जान रे नर महान।।

चल साध लक्ष्य क्यों क्लांत मनुज,

स्वयं को स्वयं कुछ पहचान मनुज।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

०६.०१.२०२४ ०६.५१पूर्वाह्न(३८१)





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