।। कविता ।।
बाधाओं का क्या ?
बाधाओं का क्या ? ये तो आएंगीं,
प्रत्येक बार कुछ नव विशेष लाएंगीं।।
अपमान मान कुछ चैन और कुछ टूटन
कई बार स्वयं आकर ये चैन चुराएंगी,
बाधाओं का क्या ? ये तो आएंगीं।।
भिन्न भिन्न स्वरूप मिलेंगे रूप मिलेगें,
दीप जलेगें दीप बुझेगें रूख उगेंगें।।
अपने मन की टूटन से स्वयं बतराएंगीं,
बाधाओं का क्या ? ये तो आएंगीं।।
पता करा देंगीं सच में सच सच क्या है,
अपनों में अपनों सा कितना क्या क्या है।।
मर्म ह्रदय के खोल खोल के दिखलाएंगीं,
बाधाओं का क्या ? ये तो आएंगीं।।
चेहरों पर लगे नक़ाब और धुंधलापन,
बदले बदले से लोग और उनका मन।।
कैसे चलना है पथ चलना सिखलाएंगीं,
बाधाओं का क्या ? ये तो आएंगीं।।
सिखला जाएंगीं मग में है कैसे चलना,
छुपे हुए अंदर के भय से कैसे लड़ना।।
रजकण के चिन्हों पर ये बाग लगाएंगीं,
बाधाओं का क्या ? ये तो आएंगीं।।
ह्रदय काँच सा टूटेगा फिर जुड़ जाएगा,
रोज़ रोज़ बढ़ना होगा तब बढ़ पाएगा।।
रूठेगें छूटेंगें कुछ बाधाएं गीत सुनाएंगीं,
बाधाओं का क्या ? ये तो आएंगीं।।
बाधाएं आशाओं को लेकर चलती हैं,
बाधाएं नित नए रूप को ही गढ़ती हैं।।
यही सत्य में सत्य सत्य सिखला पाएंगीं,
बाधाओं का क्या ? ये तो आएंगीं।।
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१४.०१.२०२४ ०९.०१पूर्वाह्न(३८३)