।। कविता ।।
राम दिखावे में न मिलेंगे
राम मिलेंगे कणकण कण में,
राम सिया के पावन मन में।।
राम मिलेंगे श्री हनुमन में,
राम सरलता के उपवन में।।
राम मिलेंगे सरल भाव में,
राम मिलेंगे सख्य भाव में।।
राम मिलेंगे कानन वन में,
राम माँ कैकई के आँगन में।।
राम झोपड़ीं में मिल जाते,
राम भक्त की जूठन खाते।।
राम दिखावे में न मिलेंगे,
राम भक्त के उर में मिलेंगे।।
राम अगर आ गए सामने,
आकर अपनी बाँह थामने।।
कैसे नयन मिलेंगे उनसे,
बोल सकेंगे कैसे उनसे।।
पूछ लिए ग़र श्री हरि हमसे,
बात धर्म की क्रम क्रम क्रम से।।
भ्रात द्रोह तो नहीं किए तुम,
गुरू द्रोह तो नहीं किए तुम।।
पूछेंगे फिर मिरे अवधपति,
वृद्धा श्रम क्यों भरे पड़े हैं।।
क्या पितु मातु को त्याग दिया है,
पुत्र धर्म परित्याग किया है।।
देखेंगे घर घर बटवारा,
देखेंगे नर हारा हारा।।
मंदिर मंदिर जाएंगे फिर,
बदला बदला पाएंगे हरि।।
मंदिर मंदिर दिखेंगे पंडे,
चंदा के अगणित हथकंडे।।
राम हमारे क्या सोचेंगे,
राम हमारे क्या बोलेंगे।।
पूछेंगे ये क्या सब क्या है,
कालनेमि अब भी जिंदा है।।
भाई भाई का दुश्मन है,
आपस में दिखती अनबन है।।
मर्यादा का भान नही हैं,
शायद हमको ज्ञान नहीं हैं।।
कैसे क्या बोलूंगा उनसे,
सच सच सच सच कैसे प्रभुसे।।
दाल हमारी नहीं गलेगी,
उनके आगे नहीं चलेगी।।
आडंबर उनको नहीं भाता,
सरल सहज नर उन्हें सुहाता।।
देखेंगे भय भूख हताशा,
देखेगें छल चाल तमाशा।।
समझ जाएंगे जान जाएंगें,
हम क्या हैं पहचान जाएंगे।।
राम प्रेम के बस भूखे हैं,
खा लेते टिक्कर सूखे हैं।।
राम दिखावे में न मिलेगें,
राम भक्त के उर में मिलेंगे।।
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
२०.०१.२०२४ ०५.४५अपराह्न(३८५)