अशआर
दिल ने दिल से कहा
कंधे अपने,कदम अपने,दम हौसला अपना
यही साथी साथ देंगे,यक़ीनन उम्र भर के लिए
लोग चाहते हैं लोगों से,कुछ ज़्यादा इस तरह
वे बोलते रहें बोलते रहें,और हम सुनते रहें
लोग ही लोग,मगर फिर भी अकेला आदमी
माज़रा क्या है,क्यूँ है फिर भी अकेला आदमी
गले लगाओ ज़रा सँभल के,बदला सा दौर है
नज़र कहीं निशाना कहीं बदला सा दौर है
हुजूम भी बहुत,शोरगुल भी बहुत,मगर साथ कितने
कोशिश करें तलाशें हक़ीक़त में साथ हाथ कितने
हम तुम अपनी अपनी राह पर हैं,मुसाफिर की तरह
हम रास्ता क्यों बदलें लश्कर को आता देखकर
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
११.०३.२०२४ ०८.०५पूर्वाह्न(३९६)