कविता-परख तू एक बार तो

 

✍️कविता✍️

परख तू एक बार तो


तू रुक नहीं, 

कदम बढ़ा।।

परख तू एक बार तो,

क्या सोचता खड़ा खड़ा।।


विरोध में उठेगें स्वर,

तू मत ठिठक तू मत ठहर।।

मत मन डिगा न पग डिगा,

तू देख खुद में झांककर।।


बहुत कुछ है शेष अब,

न कुछ गया न खो गया।।

बस है तुझे ही जागना,

तू सो गया क्यों सो गया।।


तू मत बहक तू चल निडर,

चल धैर्य धर कुछ अलग कर।।

विचलित न हो चिंतित न हो,

भृमित न हो शंकित न हो।।


तू क्यों खड़ा है अनमना,

तू क्यों डरा डरा मना।।

तू शक्ति का शिखर बड़ा

परख तू एक बार तो,

क्या सोचता खड़ा खड़ा।।


मिलेगा सब तुझे भी सब,

किस बात का तुझे है डर।।

समय की चाल को परख,

बढ़ा बढ़ा तू पग बढ़ा।।

परख तू एक बार तो,

क्या सोचता खड़ा खड़ा।।


बस शर्त एक है यही,

तू रुक न जाना हार कर।।

भय पीर सब उड़ा उड़ा,

तू चल सजग तू जाग कर।।


तू कंटकों से मत उलझ,

तू कर शपथ कदम बढ़ा।।

परख तू एक बार तो,

क्या सोचता खड़ा खड़ा।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

२१.०३.२०२४ ०९.५९ अपराह्न (३९९)



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