कविता-फिरि नेताजी आए द्वार

 

कविता

फिरि नेता जी आए द्वार


फिरि नेता जी आए द्वार,

मेरे द्वार तेरे द्वार उनके द्वार।।

झुनियां मुनियां रुनियां के घर,

खैरू धीसा हरिया के घर।।


सबको गले लगाते आए,

चरण पकरि मुस्काते आए।।

भैया दददू अम्मा बहिना,

अबकी बार लाज रख लेना।।


प्यारे युवा सुनो एक बात,

अबकी बार बनाओ बात।।

सबको मिलना तय है काम,

झूठ न कहता फेकूराम।।


तब तक आया वोटर एक,

बोला धधक भाग जा नेक।।

तेरी जुबां का क्या ठिकाना,

बदले दल और बदले बाना।।


इतने में इक अम्मा बोली,

महंगाई का रोना रो ली।।

पाँच सेर मत नाज दिला तू,

रोजगार देकर दिखला तू।।


पेपर लीक का राग सुनाया,

लल्लू कल्लू भागा आया।।

महाराज तुम जाओ जाओ,

दल बदलू मत हवा बनाओ।।


कल तक भृष्ट थे जो महाराज,

उनको साथ करि लिए आज।।

अब वे सब हो गए महान, 

जय जय जय जय महा सुजान।।


जिसकी अपनी कोई न बात,

नहीं चाहिए उसका साथ।।

वादे करि मत अब उलझाओ,

नेताजी घर वापिस जाओ।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

०९.०४.२०२४ ११.२८पूर्वाह्न(४०१)


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