अशआर-ज़िंदगी सफ़र है

 

अशआर

ज़िंदगी सफ़र है


रूठते वे हैं जिन्हें कोई मनाए आकर

थपथपाए आकर गले लगाए आकर


होती हैं यादें और यादों की यादें

ये धड़कती हैं सदा धड़कनों की तरह


दूर दूर रहो या पास पास रहो हर्ज क्या है

मगर प्यार ही मिरे दिल हर मर्ज की दवा है


खुश रहो कम में भी और ग़म में भी

ये पल भर के लिए हैं ताउम्र बिल्कुल नहीं


न तुमसे न उनसे न ख़ुद से शिकायत नहीं

बेइंतहा प्यार भी नहीं अदावत भी नहीं


चलने लगे जब तब कद्र हुई तो क्या कद्र हुई

तब हम बहुत याद आए तो क्या याद आए


भाई का हक अगर मार कर खुश हो

तुम्हें इंसान कहूँ तो गलत बात होगी


ग़र औलाद के वास्ते दगा भाई से कर गए

हम खुद-ब-खुद चेहरा ख़ुद काला कर गए


जब कम नज़र आए तो ज़रा रुक के चलो

अगर दरवाज़े नज़र आएं तो झुक के चलो


जोड़ते रहे दौलतें उम्र भर उम्र भर के लिए

मगर जब रुख़सत हुए तो खाली हाथ हुए


दिल पर ज्यादा बोझ न उठाया जाए

जिंदगी सफ़र है चलो मुस्कराया जाए


ज़मीन दो गज मिली सुपुर्दे खाक के लिए

भागते रहे ताउम्र हम बस राख के लिए


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

०१.०५.२०२४ ०६.५९पूर्वाह्न(४०६)



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