अशआर
पलटते हैं सफ़हे
(१)
ग़लत ग़लत ग़लत किसको ग़लत कहें
पलटते हैं सफ़हे हम अपने हिसाब से
(२)
बुलंदी पर उसे देखा तब सब समझ आया
बुलंदी ढांप लेती है न जाने कितनी खामियां
(३)
बनाओ अपनी पहचान अपनी शख़्सियत
आईने के सामने ख़ुद खुलकर तो जा सकें
(४)
मुझे आंधियों से खूब प्यार भी वफ़ा भी
वे आती हैं परखने बाकी है जान कितनी
(५)
शजर देता है हवा फल फूल इमारती लकड़ी
पता है अंजाम अपना फिर भी दिए जाता है
(६)
ख़िलाफ़ भी नहीं मुआफ़िक भी कोई नहीं
वक़्त की सब बात हैं सब बात वक़्त की
(७)
रहबर भी सही थे रहज़न भी कम नहीं
दोनों बड़े गुरू थे दोनों ने कुछ सिखाया
(८)
इश्क़ ख़ुद से करो और अपनों से करो
इश्क़ बड़ी चीज है बड़ी चीज काम की
(९)
अपने क़दम अपनी चाल हो तो बात
ग़र उनके क़दमों से चले तो क्या चले
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१४.०५.२०२४ १०.४८पूर्वाह्न (४०८)
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