अशआर-हम मुस्कराए

 

अशआर

हम मुस्कराए


मुकद्दर भी क्या कमाल करता है

जब भी करता है बेमिसाल करता है


जब जब क़दम मिरे लड़खड़ाए

हौले से कोई साथ आया हम मुस्कराए


टूटता रहा और चलता रहा

ख़ुद ही ख़ुद मैं संभलता रहा


खुश बहुत खुश रहना चाहता हूँ

हँसते हँसते दर्द सहना चाहता हूँ


जो ख़ुद के नहीं ग़ैरों के भरोसे रहे

वे न तो इधर के रहे न उधर के रहे


बात बात पर यूँ बदलतें हैं लोग 

फ़ितरत बदलते हैं चेहरे बदलते हैं लोग


टूटता देखा मिनें जब दिल अपना

थाम लिया यूँ हीं ख़ुद दिल अपना


शिकवा नहीं शिकायत भी नहीं

मिरी किसी से अदावत भी नहीं


मिरा दिल कब मिरा रहा

यह तिरा था यह तिरा रहा


शुक्रिया मिरी ज़िंदगी तू किस किस तरह से पेश आयी

कभी दिल लगा के पेश आयी कभी दिल जला के पेश आयी


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

२२.०५.२०२४ ०६.१२ अपराह्न(४१०)


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