अशआर
यूँ हीं हवा के साथ साथ
यूँ हीं हवा के साथ साथ चल
दर्द के बाद भी मुस्करा के चल
उमीदों की शाखों पर खिले हैं फूल
वक़्त के साथ हाथ मिला मिलाके चल
तारीफ़ सुनकर कुछ उछल जाते हैं
मगर जो जागते हैं वे सँभल जाते हैं
तारीफ़ अगर मुँह पर हुई तो क्या बात
पीठ पीछे तारीफ़ तो बात नहीं तो क्या बात
ठोकरें यक़ीनन बड़ा कमाल करती हैं
वक़्त पर ये हल सारे सवाल करती हैं
सच में ठोकरें सबक सिखाने को आती हैं
कुछ नया कुछ अलग दिखाने को आती हैं
झुका कर कदमों में आदमी को आदमी
रौंदता जाता है मुस्कराके आदमी को आदमी
बहुत चालाक शिकारी है यक़ीनन आदमी
चबा चबा के खाता है आदमी को आदमी
ज्यादा मत सोचो कि कल क्या होगा
कल आने दो हर सवाल का हल होगा
भागमभाग से बचो उम्र तो जानी है
हवा की अपनी कहानी है जिंदगानी है
यूँ हीं नशे की गिरफ़्त में न आओ
कुछ भी नहीं हैं हम समझ जाओ
मुस्कराना बहुत बहुत जरूरी है
जिंदा होके नज़र आना जरूरी है
गिरोगे तो उठोगे उठोगे तो चलोगे
ये सिलसिला मुद्दत से चला आया है
दुश्मनी भी जरूरी है दोस्ती भी जरूरी
दुश्मनी लड़ना सिखाती है दोस्ती बढ़ना
कौन क्या कहता है कहने दो
हवा है और क्या बहने दो
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
२२.०६.२०२४ ०८.०८ पूर्वाह्न(४१३)