कविता-सत्ता है शासन है जब तक...

।। कविता ।।

सत्ता है शासन है जब तक...


सत्ता है शासन है जब तक,

तब तक ये सममान समझना !!

बदल गए या गए बदल ग़र,

जन मन की पहचान समझना !!


चमत्कार को नमन यहॉं पर,

नित्य नए उपमान समझना।।

मान,शान,उपहार,प्रशंसा,

अस्थायी सब,ज्ञान समझना।।


सत्ता है शासन है जब तक,

तब तक ये सममान समझना !!


पद मिलते ही दौड़े दौड़े,

पनही बिन दौड़े आएंगे।।

दाग लगे हों गहरे पहले,

पद कद से धुलते जाएंगे।।


भितरघातियों के चेहरे की,

जहर सनी मुस्कान समझना।।

जितने भी बढ़ते जाना तुम,

इंसा को इंसान समझना।।


सत्ता है शासन है जब तक,

तब तक ये सममान समझना !!


बगुले को भी हंस कहेगें,

दया,धर्म,सुर अंश कहेगें।।

है मानव अति जीव सयाना,

पल में बदले, बदले बाना।।


गुलदस्ता,माला, दोशाला,

लड्डू बर्फी हाला प्याला।।

विरुदावली गुणों की गाथा,

पाखंडी परिधान समझना।।


सत्ता है शासन है जब तक,

तब तक ये सममान समझना !!


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

१९.०७.२०२४ ०६.२८पूर्वाह्न (४१६)



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