कविता
चिरैया के अंडे
एक पेड़ था बहुत पुराना,
उस पर घोंसलें और घोंसलों में अंडे।
शायद वे गौरैया के या और चिरैया के ?
अंडों में कुछ हरकत अब होने लगी,
चिरैया रोज़ उन अंडों पर सोने लगी।।
बरसात का महीना उमस भरी रात,
जमीन में बने बिल और उनमें सरीसृप।।
सहसा बिजली कड़की आंधी के साथ,
होने लगी जोरदार मूसलाधार बरसात।।
एक काला नाग बाँबी से बाहर आया,
बाँबी में पानी गया भर विषधर घबराया।।
पेडों की तरफ उसने नजर दौड़ाई,
तभी घोंसले पड़े दिखाई उसे क्षुधा सताई।।
उसकी क्षुधा तीव्र हुई उसने सूंघ ली गंध,
चिरैया और चिरैया के अंडों की सुगंध।।
सांप ने पेड़ पर जैसे चढ़ना शुरू किया,
और चिरैयों ने खतरा भांप चिचियाना।।
बलात सांप ने चिरैया को दबोचा,
उसके अंडों की ओर मुख खोला।
तभी सहसा अंडा फूटा नन्हा खग बोला
आप मुझ पर रहम कर सकते हैं क्या ??
सांप सोचने लगा फिर बोला क्यों करूँ..
बच्चे ने कहा बलवान आओ बचाएं प्रान।
मुझे खतरा दिख रहा है समूचे अस्तित्व पर,
मनुष्य से मनुष्य की पैशाचिक भूख से !!
मनुष्य की आसुरी भूख सब खा जाएगी,
पहाड़ पोखर नदियां घोंसले बाँबियाँ पेड़ !!
हमारे घरों पर अतिक्रमण कर हमें भगाएंगे
आपसी विचार शून्यता का लाभ उठाएंगे।।
नन्हा पखेरू बोलते बोलते शांत हो गया,
लगा ऐसे की चिर निद्रा में वह सो गया।।
पर कालद्रष्टा नन्हा खग था मौन चुप शांत,
सांप हुआ स्तब्ध निरुत्तर और सशंकित।।
अस्तित्व पर खतरे की आहट दी सुनाई,
तत्काल शीघ्रातिशीघ्र सभा गयी बुलवाई।।
नन्हे पखेरू की बात पर गहन चर्चा हुई,
फिर निर्णय दिया गया मनुष्य से सावधान !!
सभापति सभा समाप्त करते हुए बोले,
समस्या जटिल और अत्यधिक चिंतनीय है
विद्वान कहते हैं समय रहते जागना उचित
अन्यथा फिर पछतावा ही पछतावा ??
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
०९.०७.२०२४ ०७.३२पूर्वाह्न (४१५)