अशआर-अपने ही अंदाज़ में

 

अशआर

अपने ही अंदाज में 

(०१)

बोलते शहद से मीठे बोल अंदर ज़हर

बहुत मिल जाएंगे ऐसे इधर उधर अक़्सर

(०२)

गौर से पढ़ सको तो पढ़ना चेहरे उनके

जान पाओगे तब ज़रा पढ़ना चेहरे उनके

(०३)

इश्क़ में उनके इतना न जलाओ ख़ुद को

समंदर बहुत गहरा है न डुबाओ ख़ुद को

(०४)

चाहिए कुछ कुछ कुछ जानना अब तो

आदमी में आदमी  पहचानना अब तो

(०५)

जन्नत भी यहीं हैं सुकूंन नाम भी यहीं

कोई अलग से इसका कहीं इंतजाम नहीं

(०६)

दहलीज के अंदर हम खफ़ा खफ़ा खफ़ा हैं

तलाशनी होंगीं वज़हें क्यों खफ़ा खफ़ा खफ़ा हैं

(०७)

कुछ तुम चलो कुछ उन्हें भी चलना होगा

ज़रा ज़रा ज़रा बढ़ना होगा बदलना होगा

(०८)

अपनों को छोड़ गले सबको लगाते रहे

दहलीज़ सिसकती रही हम छुपाते रहे

(०९)

गुफ़्तगू से दूर और ख़ुद ख़ुद से नाराज़

आदमी टूटा हुआ सा कर रहा आगाज़

(१०)

आंधियों से गलबहियां तूफानों से यारी

समझ समझ समझ ज़रूरी है समझदारी

(११)

रंगीन चश्मों में तो सब रंगीन नज़र आता है

हक़ीकत में इंसान आजकल आंसू बहुत छुपाता है

(१२)

कोई पूछे ज़रा जाकर गले लगाकर उससे 

देखना फिर तुम क्या क्या क्या बताता है

(१३)

टूटा हुआ दिल लिए हकीमों के पास गया

हक़ीम भी अब तो उसे ख़ूब बरगलाता है

(१४)

इलाज़ कहीं पर है मगर तलाश कहीं पर

आजकल ये नज़ारा मुँह बहुत चिढ़ाता है

(१५)

सबक़ किताबों के अब गलत हुए जाते हैं

आदमी आदमी को बड़े चाव से चवाता है

(१६)

शिकायतों के पुलिंदे ग़र जला सके तो जला 

देखना फिर क्या क्या याद याद याद आता है

(१७)

टूटते देखे हैं हमने यूँ दरख़्त पल भर में

वज़ह थी तो बस अकड़ के खड़े रहने की

(१८)

तब आए अगर तो तुम क्या आए

न वक़्त न गुफ़्तगू न हम क्या आए

(१९)

आदमी जुदा जुदा जुदा हर बार लगता है

परखने के बाद कितना असरदार लगता है

(२०)

गिलां भी नहीं करना शिक़ायत भी नहीं करना

किसी से किसी तरह की अदावत भी नहीं

करना

(२१)

कदम ख़ुद के दम ख़ुद की रहे तो ठीक 

दूसरे के कदम दम साथ आएं या न आएं


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

३१.०७.२०२४ ०७.३१ पूर्वाह्न (४१८)










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