कविता
जीवन क्या है ??
जीवन क्या है ? प्रश्न बड़ा है,
उलझा सारा जगत पड़ा है।।
जीवन नित संघर्षों का घर,
उन्नति अवनति पहर पहर।।
अपमानों में सम्मानों में,
उलझे पड़े इन्हीं खानों में।।
ऊपर नीचे, नीचे ऊपर,
एक साथ दो दो म्यानों में।।
अस्थिर लटक रहा पलड़ा है,
जीवन क्या है ? प्रश्न बड़ा है।।
उलझा उलझा उलझा उलझा,
समझे लेकिन सुलझा सुलझा।।
भूख धनार्जन लोभ लालसा,
फँसता बुनता मकड़ जाल सा।।
यक्ष प्रश्न नाना प्रकार के,
छद्म प्रकट भय जीत हार के।।
रिश्ते नाते सब सिखला दे,
जीवन जब चाहे उलझा दे।।
सत्य अपंग असत तगड़ा है,
जीवन क्या है ? प्रश्न बड़ा है।।
परिजन पुरजन बंधु मित्रवर,
सबके अपने अपने हैं स्वर।।
जीवन है बस छद्म दिलासा,
जीवन टूटन जीवन आशा।।
बोझ न ज्यादा और बढ़ाना,
कम खाना गम खाना गाना।।
स्थिर नहीं सदा रहता कुछ,
मान बढ़ाई पद यौवन सुख।।
गिरना तय जो उच्च उड़ा है,
जीवन क्या है ? प्रश्न बड़ा है।।
खंड खंड कर देता सब कुछ,
गर्व चूर हर लेता सब कुछ।।
जीवन का संदेश समझ लो,
छुपा हुआ उपदेश समझ लो।।
मकड़ी सा जाला जकड़ा है,
जीवन क्या है ? प्रश्न बड़ा है।।
हँसना गाना रोना खोना,
पल में मिट्टी पल में सोना।।
जीवन उलझाता जाता है,
स्वर अपने जाता गाता है।।
तिरस्कारों के हार दिलाता,
प्रीति रीति वौहार सिखाता।।
पुष्प सुखाता पुष्प खिलाता,
बंजर भू पर रूख उगाता।।
वीर वही जो अभय लड़ा है,
जीवन क्या है ? प्रश्न बड़ा है।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
०८.०८.२०२४ १०.२५पूर्वाह्न (४१९)