कुंडलियां-चमचा पद्धति

 

कुंडलियां

चमचा पद्धति

✍️०१✍️

चमचा पद्धति श्रेष्ठ गुण,कर दे बेड़ा पार।

चरन चाटते जाइये,सब मिल जावै झार।।

सब मिल जावै झार,तलउए चाटत जाना।

हाँ जी हाँ जी बोल,बोल में बोल मिलाना।।

लेकिन है गुण कठिन,न जादै नर पा पाते।

जो यह गुण पा जात,सीढियां चढ़ते जाते।।

✍️०२✍️

पत्रकार दादा मिले,नाम था श्री खुद्दार।

द्वार द्वार पर भटकते,विज्ञापन कूँ यार।।

विज्ञापन कूँ यार,मिलै तौ लिखें करारा।

जो कोरे आ जांय,खोल करि करें उघारा।।

पत्तलकार बने जाते हैं,पत्रकार कछु यार।

मिल जाते नतमस्तक होते,बोलें जैजैकार।।

✍️०३✍️

झूठन कौ मेला लगौ,भीड़ गिनी नहिं जाय।

बगुला जैसौ बगबगौ,खड़ौ खड़ौ चिल्लाय।।

खड़ौ खड़ौ चिल्लाय,सुनावै गुण मौं अपने।

भीड़ खड़ी हरषाय,दिखावै नए नए सपने।।

फिर गई बन सरकार,हाथ खाली के खाली।

उजड़त जावत रोज,ग़रइवै नित घर वाली।।

✍️०४✍️

घाग रहे थे राम सुख,कार्यकाल के वक्त।

दिखते थे वे छःफुटी,चौकस तगड़े सख्त।।

चौकस तगड़े सख्त,पचाने में माहिर थे।

जिंदा मुर्दा खांय,फसाने जग जाहिर थे।।

लूट झूट सट्टा बट्टा,मोरी चोरी का खाते।

लेन देन में कुशल,तनिक ना वह शर्माते।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

१७.०८.२०२४ ०४.४८अपराह्न (४२१)



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