❤️शायरी- दिल से ❤️
❤️०१❤️
वह नज़र में मिरी, है आदमी नहीं
जो आदमी सा है,पर आदमी नहीं
पैसे का नशा खूब,क़ौमी ग़ुरूर खूब
ख़ुद मद में चूर खूब,पर आदमी नहीं
❤️०२❤️
दिल चाहता है,कि तुझसे बात कर लूँ
मगर पहले सा मिले,मुलाकात कर लूँ
फ़ासले तल्खियां,मिटा सके तो बता
बदले मिज़ाज ढंग,फिर साथ चल लूँ
❤️०३❤️
हैं कितने दाग़दार,ख़ुद को ख़बर तो है
छुपाते हैं मगर खूब,लेकिन नज़र तो है
मिलकर के घोंपते हैं,खंजर जो पीठ में
वो सोचते पता नहीं,पर बा-ख़बर तो है
❤️०४❤️
इक रिवाज़ बड़े ज़ोर से, चलने लगा है
आदमी को आदमी रौंदके,चलने लगा है
शिक़ायत किससे करोगे,कि रौंदे गए हो
रौंदने वाला हुक्काम संग,मिलने लगा है
❤️०५❤️
बात ही बात में,बात पता चलती है
कुछ मुलाकात में,विसात पता चलती है
छुपाओगे तो भी,छुप नहीं सकते अज़ीज
लफ़्ज़ों से लहजों से,औक़ात पता चलती है
❤️०६❤️
असल में बात क्या है, कि तू रूठा है
गुमसुम है और ख़ुद ही,ख़ुद से रूठा है
चल उठ चल मुस्कराएं, चराग़ जलाएं
ज़िंदगी बेवफ़ा है,फिर भी क्यों रूठा है
❤️०७❤️
बड़े उस्ताद होते हैं,नकाबों में छुपे चेहरे
करते हैं चुप के छुपके,ग़ुनाह छुपे चेहरे
ज़रा सँभल के पहचान के चलना सफ़र
जगह हर जगह मिलते हैं दिल छुपे चेहरे
छुपे चेहरे नुकसान,करेगें और करते हैं
किसके सगे होते हैं,कब छुपे छुपे चेहरे
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
✍️स्वतंत्र लेखक✍️
२४.०८.२०२४ १०.३१पूर्वाह्न(४२२)
🙏🏻देवकीनंदन चरण कमलेभ्यो नमः🙏🏻
🌷कुंडलियां🌷
असुरक्षित हैं बेटियां,असुरक्षित हैं गाय।।
मानव मानव सा नहीं,धर्म शील सकुचाय।।
धर्म शील सकुचाय,कंस का कुनबा जिंदा।।
नित नित पनपतु पाप वैर, अवनी शर्मिंदा।।
श्रीहरि यदुसुत आइए,जगपति जगदाधार।।
वध आवश्यक दैत्य कर,प्रगटउ नन्द कुमार।।
✍️जय हो नन्द लाल की✍️
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
२६.०८.२०२४ ०९.३९ पूर्वाह्न (४२३)
(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष)