अशआर ❤️दिल से❤️

 

✍️अशआर✍️

❤️ दिल से ❤️


अदब उसका करो, जो आदमी सा हो

फ़क़त दिखने से कोई आदमी नहीं होता


वह गुनाहों का ताज, सर रख घूमता है

उसे लगता है शायद मैं उसे सज़दा करूं


समझ जाओगे तुम भी, वक़्त लगता है

नक़ाब उतरने में मिरे दिल वक़्त लगता है


नजर नजर नजर हर नजर की नजर है

खबर है खबर है सब खबर है खबर है


उसके दर न जाना भूलकर भी कभी

कि देखें तुम्हें जब तब बाग बाग न हों


बेनकाब चेहरे बहुत कम मिलेंगे यहॉं

अफ़सोस मिरे दिल नकाबों का दौर है


हुजूम आसपास बहुत दिखता रहा

फिर भी जमीं पर कोई तड़पता रहा


मायूस होकर रास्ते तो मिल नहीं सकते

हौसले के साथ कदम बढ़ा बढ़ा के चल


छोड़ देने चाहिए वे लोग और वे महफिलें

सामने कुछ और,पीछे पीठ जो कुछ और हों


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा “शिव”

स्वतंत्र लेखक

१६.०९.२०२४ ०८.२१अपराह्न(४२७)




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