।। कविता।।
हूँ थका नहीं मैं..
हूँ थका नहीं मैं..
सधे कदम चलता हूँ…।
हूँ अवगत झंझावातों से,
गिरता हूँ नित्य सँभलता हूँ
हूँ थका नहीं मैं..
सधे कदम चलता हूँ..।।
हानि लाभ मन के विकार हैं,
जीत हार उपहारों से।।
शंकित किंचित मात्र नहीं मैं,
यश अपयश पिरहारों से।।
साधारण रण नहीं जिंदगी,
प्रश्न अनेकों यक्ष यहाँ।।
मान अनादर प्रीति प्रशंसा,
गुप्त और प्रत्यक्ष यहॉं।।
समतामूलक भाव लिए मैं,
पग पग जग जग बढ़ता हूँ..।।
हूँ थका नहीं मैं..
सधे कदम चलता हूँ..।।
जीवन ने कितनी बार,
उतार चढ़ाव दिए….।।
दे दिए नेह के पुष्प,
अभाव प्रभाव दिए…।।
तपती दोपहर ने आके गले लगाया,
ठिठुरन बर्खा ने खूब राग सुनवाया।।
ठोकरें ज्ञान का दीप जलाने आयीं,
जीवन कैसे जीना बतलाने आयीं ।।
प्रत्येक हार का वार सिखाने आया,
चलना कैसे हर बार बताने आया।।
मैं जगता जगता जगता हूँ…,
हूँ थका नहीं मैं..
सधे कदम चलता हूँ..।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
०१.१०.२०२४ ११.२८ अपराह्न(४३०)