।। कविता ।।
साहसी वही नर होते हैं..
साहसी वही नर होते हैं,
विपरीत वक्त ना रोते हैं।।
विपदाएं आहें त्रास क्षुधा,
हँसते हँसते सब ढ़ोते हैं।।
प्रचंड वेग या तप्त शीत,
रहते सदैव सानन्द नीत।।
अनुराग द्वेष सब एकसार,
नर देव करें उनको दुलार।।
जो शांत रहें विपरीत काल,
हल कर लेते वे हर सवाल।।
जो वक्त रहे जग जाता है,
पद यश वैभव सब पाता है।।
सामर्थ्य स्वयं की दिखला तो,
रे! जाग तनिक आगे आ तो।।
तुझमें हैं सारी शक्ति मनुज,
बल तेज धैर्य तप भक्ति मनुज।।
स्वयं के भीतर इक बार देख,
फिर जीत देख जयकार देख।।
तू कर सकता है सकल काज
अनुराग रीति उपहार देख।।
बुद्धी बल गुन आकार देख,
मानव,मानव व्यवहार देख।।
पूजा अजान पाखंड तिलक,
बढ़ता धरती पर भार देख।।
अपने अंदर की सुन पुकार,
हर बार बार सुन बार बार ।।
चल पड़े वे चलना सीख गए,
हर बार सँभलना सीख गए।।
जो जाग गया वह जान लिया,
अन्तर्बल निज पहचान लिया।।
जो डरा रहा नित नित भय से,
उसे कौन बचा सकता क्षय से।।
दृष्टी समतुल्य समाजपरक,
मत भेदभाव के बीज दबा।।
उग आवेगें शूलों के विटप,
पाँति यहाँ बहु भाँति वहाँ।।
मिलता यूँ नहीं उच्चआसन,
सहनी पड़ती चोटें अनेक।।
रोकतीं रुकावट बाधाएं,
वे धीर नहीं जो रुक जाएं।।
मंजिल वे जन पा जाते हैं,
ठोकरों से न भय खाते हैं।
जग जग जग जग संसार देख,
उठ उठ उठ उठ जयकार देख।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
०५.१०.२०२४ ०९.५५पूर्वाह्न(४३१)