गज़ल-समय गुजरता है रोज़ रोज़



।। गज़ल ।।
समय  गुजरता  है  रोज़ रोज़

खिलाफ़ हवाओं के सामने लड़खड़ाया नहीं जाता
सुकून इज्जत दिल ना मिलें वहां जाया नहीं जाता

वक़्त खिलाफ़ है अगर तो कोई  बात नहीं 
मुसाफिर है ये चला जाएगा घबराया नहीं जाता

जरूरी नहीं कि जो ख़्वाब देखे वे पूरे हो ही जाएं
जो तिरे हिस्से में आया है झुठलाया नहीं जाता

उदास चलने से कुछ हासिल तो नहीं होगा
समय गुजरता है रोज़ रोज़ लौटाया नहीं जाता

डरना भी नहीं और किसी को डराना भी ठीक नहीं
मिरे दिल गलत के सामने सर को झुकाया नहीं जाता

दिल भी नहीं मिलते जिनसे मन भी नहीं मिलते
ए-दिल उन्हें सीने से लगाया नहीं जाता

कौन चाहेगा कि तुम निकल जाओ आगे उनसे
जो देखता है ख़्वाब जागके उसे सुलाया नहीं जाता

राज़ की बात इक बताता चलूं मिरे दिल
कोशिशों के बाद भी उजाले को छुपाया नहीं जाता

खफ़ा होना बुरी बात नहीं मगर बेवफ़ाई ठीक नहीं
ज़ख्म पर मलहम की जगह नमक लगाया नहीं जाता

ये सच है कि तिरे नसीब का कहीं जा नही  सकता
जो है ही नहीं तिरे नसीब में उसे लाया नहीं जाता

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१९.१०.२०२४ ०१.३५अपराह्न (४३४)





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