अशआर ❤️दिल से❤️

 

अशआर
❤️ दिल से ❤️

पुरखों की ज़मीन बेंच कर सुकूँ कैसा
जो जिंदा हैं उन्हें यह रास कब आया

वह जो है हर नज़र पर नज़र रखता है
तिरी मिरी वह सबकी ख़बर  रखता है

मौन की अपनी भी इक जुबां होती है
समझता वह है जिसे पहचान होती है

तुम्हें उस वक़्त मिलने से मनाही होगी
जब  मिरे  जाने की घड़ी आ ही होगी

ज़िंदगी भर के लिए न जवानी न दौलत
समय के फेर में सबके सब उलझे हुए हैं

दौलत के बदौलत हम कितना खरीद पाएंगे
क्या चंद सांसे चंद सुकूँ सेहत खरीद पाएंगे

जिंदगी भर जिनके दिलों में जगह न थी
आख़िरी वक़्त देखिए कैसे चले आए हैं

दो चेहरे दो गले और दो नावों का सवार
कोई बचा नहीं सकता ये डूबेंगे ही डूबेंगे

आख़िरी रात कब आखिरी मुलाक़ात कब
पता  नहीं  चलो इश्क़ करें फिर साथ कब

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
२६.१०.२०२४ ०६.५८पूर्वाह्न (४३५)







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