शेर ओ सुख़न
।। दिल से ।।
✍️❤️ ०१ ❤️✍️
वक़्त की ज़द में सब आए हुए हैं
मगर सब अलग चश्मे लगाए हुए हैं
कुछ जमीर बेंच बैठे इज्ज़त रखी गिरवीं
तख़्त के सामने कदमों में सर झुकाए हुए हैं
तुम्हें लगता है कि सब चाहतें हैं तुम्हें
हक़ीक़त ये नहीं दिल चेहरे छुपाए हुए हैं
दौलत है शौहरत है रुतबा है कुर्सी है
बदौलत इसी के सर पर उठाए हुए हैं
✍️❤️ ०२ ❤️✍️
इम्तिहानों से तानों से घबराया नहीं जाता
मौसम खिलाफ़ देख लड़खड़ाया नहीं जाता
तिरे अंदर जो बैठा है वो शाहों का शाह है
सामने उसके कुछ भी छुपाया नहीं जाता
अंदर दर्द हो इश्क हो या इसके अलावा कुछ
हाल-ए-दिल किसी को यूँ सुनाया नहीं जाता
मिलते हैं बहुत से हसीन चेहरे जहान में
मगर दिल किसी से यूँ हीं लगाया नहीं जाता
✍️❤️ ०३ ❤️✍️
चाहता कौन है तुझको मिरे दिल माज़रा समझो
हवा बदली तो बदलेगें इरादों को ज़रा समझो
उम्र भर कौन रख पाया जवानी और शौहरत को
समय बदलेगा बदलेंगे नकाबों से घिरा समझो
किनारे वे ही पाते हैं डरे दरिया से जो ना हों
जो पहले से डरा बैठा उसे तो अधमरा समझो
कोई तुमको सजा के चांद थाली में नहीं देगा
जगाओ ख़ुद को ख़ुद ही ख़ुद दिया यह मशविरा समझो
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
०९.१०.२०२४ ०७.५९ पूर्वाह्न (४३२)