कविता-अतिथि हैं स्वागत करो ..!!

 

कविता
अतिथि हैं स्वागत करो..!!

यदि है अंधेरी रात भी तो क्या करें,
किसलिए भयभीत होकर डग भरें।।
रुक नहीं सकती सवेरा आएगा ही,
फिर खिलेगी धूप तम छट जाएगा ही।।

सतत गति है सब बदलता है यहाँ,
यह नियत यह पूर्व निश्चित है यहाँ।।
भोर के उपरांत सूरज आएगा ही,
यह भी पहले से नियत है जाएगा ही।।

वालपन यौवन जवानी फिर बुढ़ापा,
छूटता जाता है मग में नित्य ही कुछ।।
आज कल दिन रात महीने साल बीते,
किंतु  फिर  भी भूख बाकी हाथ रीते।।

कौन है जो पा सका सब यह बताओ,
है अनिश्चित श्वास का पथ मुस्कराओ।।
बंद नयनों से दिखेगा कौन क्या क्या?
जिंदगी का पथ कटीला है नया क्या।।

धीर नर वो ही जगत में जो चला है,
हर गली हर मोड़ पर जाता छला है।।
ताप अंधड़ मेघ गर्जन शरद ऋतु में,
नित्य मुस्कराता हुआ मग में मिला है।।

अंत में आरंभ है विकास में विनाश है,
तू क्यों सशंकित क्यों डरा क्या त्रास है।।
कुछ पलों के अतिथि हैं स्वागत करो,
उठो जागो चल अभय मग  डग भरो।।

मिला यदि अपमान या सम्मान जग में,
मत उलझ जाना कहीं नर तू भरम  में।।
छोड़ता चल तोड़ता चल भार कम कर,
देख पथ है नित नया चल सध कदम धर।।

चल सध कदम धर।।
चल सध कदम धर।।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
२६.११.२०२४ ०८.३१पूर्वाह्न (४४०)





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