कविता-विष पी करके मुस्कराना है !!

 

कविता
विष पी करके मुस्कराना है !!

पग पग  मग  बढ़ते जाना है,
विष पी  करके मुस्कराना है !!
दग्ध ह्रदय  वेदना  त्रास संग..
मिल  मिल  ह्रदय  लगाना है,
पग  पग  मग  बढ़ते जाना है।।

चोट ह्रदय की छुपा छुपा कर,
चलते रहना नित मुस्करा कर।।
ह्रदय प्रफुल्लित रख यायावर..
क्षण में बदले ठौर ठिकाना है,
विष  पी  करके मुस्कराना है !!

पीड़ा  हो  रग रग भर भर कर,
ठोकर करें तिलक आ आ कर।।
संशय भृम बातें अनहित दुःख..
सम  रह  कर  सुख  पाना है,
विष  पी  करके मुस्कराना है !!

मिले  अनादर  या फिर आदर,
चलता चल निर्भय गुण आगर।।
पल पल पल घटते जाते पल..
समय  गया   नहीं  आना  है,
विष  पी  करके मुस्कराना है !!

विपति काल परखता धैर्य बल,
अंतर  का  बल बाहर  का बल।।
प्रीति रीति व्यवहार  आचरण..
बुद्धि   विकेक   खजाना   है।।
विष  पी  करके मुस्कराना है !!

मिलता  नहीं यद्द्पि जो चाहो,
मिला उसे हसि ह्रदय लगाओ।।
अस्थिर अस्थाई सब कुछ प्रिय..
उलझ  सुलझ  जगि  जाना  है,
विष   पी  करके  मुस्कराना है !!

क्षणिक  मोद  आमोद  जवानी,
ढल ढल पल पल ढलती जानी।।
शब्द  करें  साम्राज्य काल तक..
बयरु   ना  तनिक  बढाना है,
विष  पी  करके  मुस्कराना है !!

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१३.१२.२०२४ ०९.५५ पूर्वाह्न(४४३)



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