कविता
हार स्वीकारी नहीं है !!
हार स्वीकारी नहीं है,
गयी मति मारी नहीं है।।
चल रहा हूँ सजग निर्भय…
वक्त से भारी नहीं है,
हार स्वीकारी नहीं है।।
तुम मुझे अपमान दो,
सम्मान दो ।।
हार दो पुरस्कार धान्य,
वितान दो ।।
देख अरिदल विकट भट…
तलवार रण डारी नही है,
हार स्वीकारी नहीं है।।
हार जय या मृत्यु पाऊं,
रहूँ प्रमुदित मुस्कराऊं।।
मग मिरा मुझको सुझावे,
आ रही बाधा कोई न्यारी नहीं है,
हार स्वीकारी नहीं है।।
क्षणिक सुख के हेतु क्या पग को डिगा दूं,
अधमता के सामने सिर को झुका दूं।।
भूख को मैं रौंदता आया यहाँ तक…
मत समझना सभय,रण जारी नहीं है,
हार स्वीकारी नहीं है।।
या पराजय पूर्ण हो,
या विजय सम्पूर्ण हो।।
अधमरा रहना नहीं आता मुझे…
सामने आ देख,लाचारी नही है,
हार स्वीकारी नहीं है।।
पीठ पर प्रहार सम्मुख पुष्पहार,
दे रहा था नित्य कोई हर प्रकार।।
था मुझे स्वीकार ह्रदय था समर्पित…
मत ह्रदय कहना समझदारी नहीं है,
हार स्वीकारी नहीं है।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
२२.१२.२०२४ ०७.३५पूर्वाह्न (४४४)