शायरी
दिल से
✍️❤️०१❤️✍️
ख़ुद के गुनाहों से कुछ तो बात कर
आ आईने के सामने मुलाकात कर
अक्स ख़ुद का ख़ुदसे छुपाना ठीक नहीं
लगे हैं दाग़ कितने कुछ सवालात कर
✍️❤️०२❤️✍️
सुपुर्दे आग जब हो जाऊँगा मैं
सफ़हे पलटोगे याद आऊँगा मैं
आज तुम मुझे चाहो या न चाहो
अल्फ़ाज़ बन गुनगुनाऊँगा मैं
✍️❤️०३❤️✍️
मिनें ग़र तुम्हें यूँ दिखाबे से चाहा होता
और ही रंगत लिए नज़र आया होता
समझ जाता अंजाम अजनाने जाने में
हवा के साथ साथ गुनगुनाया होता
✍️❤️०४❤️✍️
रोज़ रोज़ रोज़ रोज़ वक़्त गुजरता है
हमसे तुमसे इशारों में बात करता है
समझ जाते हैं समझदार कुछ इशारे
मगर जो नशे में है वो कब सुधरता है
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
०१.०१.२०२५ ११.३९अपराह्न(४४५)