अशआर-दिल से❤️❤️

अशआर

दिल से ❤️❤️

चलो  तो  ख़ुद के  कदमों के सहारे
नहीं तो वक़्त अपना हिसाब माँगेगा

सामने कुछ और पीछे पीठ कुछ और
यही महंगे नगीने हैं यही उस्ताद हैं

मिलें ग़र हाथ तो दिल भी मिले हों
नक़ली  मुलाक़ात नहीं आती यारो

तुझे  तकलीफ़ है ग़र दिल मिलाने में
शौक़ नहीं मुझको तिरे साथ आने में

चंद पल की ज़रा सी बस  मुलाक़ात 
हम लड़ते रहे बेवज़ह ख़ुद ही ख़ुद से

मिरी आदत ही नहीं  हां में हां बोलूं
शौहरत दौलत रुआब देखकर बोलूं

यूँ  तो  कट  ही  जानी  है उम्र सारी
कुछ पन्ने ऐसे रहें जो ख़ास हो जाएं

मुफ़लिसी बड़ी मशहूर गज़ल होती है 
जो इसे गाता है वो ही समझ पाता है

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
०९.०१.२०२५ ११.०५ पूर्वाह्न(४४६)




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