कविता-चल चल निर्भय...

 

कविता
चल चल निर्भय…

धधकते   अनल   के  साथ  साथ,
अंधड़  जलधर  संग  मिला   हाथ।।
भय  को  पद तल से कुचल कुचल,
चल चल निर्भय चल चल चल चल।। 

जीवन  का  क्या  पल दो पल का,
है  नहीं  पता  कुछ  भी  कल  का।। 
तू  चलता   चल     होकर निश्छल,
चल चल निर्भय चल चल चल चल।। 

मिलते   मग   बहु   उपहार   हार,
संयमित    रहो    नर      एकसार।।
लेकर    विवेक   संयम   और  बल,
चल चल निर्भय चल चल चल चल।। 

भय  किससे  क्यों  खाते  जग  में,
रख   शक्ति   ज्ञान  प्रण रग रग में।।
मत   ठिठक  देख   भारी  अरिदल,
चल चल निर्भय चल चल चल चल।। 

जो  स्वयं  हीं  स्वयं  से  हैं सभीत,
किस  भांति  मिलेगी  उन्हें   जीत।।
अंतर  के  भय से  निकल  निकल,
चल चल निर्भय चल चल चल चल।।

आशाएं   निज  के  बल  पर  रख,
कर्म   धर्म   और   कल  पर  रख।।
अन्याय  न  कर  घटता  पल  पल,
चल चल निर्भय चल चल चल चल।।

मरना   मत   होकर   नर   किंकर,
बढ़  आगे नर  जय कर   जय कर।।
होती   शब्दों   की   चोट     प्रबल,
चल चल निर्भय चल चल चल चल।।

पाकर   अनेक   पद   मान    हार,
सम   रहना    नर  तू      गुणागार।।
पल  भर  ना   जाए  व्यर्थ  निकल,
चल चल निर्भय चल चल चल चल।।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१६.०१.२०२५ ११.४९ पूर्वाह्न (४४८)




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