गज़ल-मुस्कराया जाए

 

गज़ल
मुस्कराया जाए

उमर  सारी  यूँ   हीं  न  जाया   जाए
चलो चलें किसी के काम आया जाए

उजड़ना और उजाड़ना कोई बात नहीं
चलो चलें कुछ बेघरों को बसाया जाए

दहलीज  न सिसके और न अपने, दिल
समझ सोच के कदमों को बढ़ाया जाए

दिल का दर्द दिल में ही छुपाकर रखना
यूँ हीं हर किसी के सामने न लाया जाए

हो सके तो गुस्ताखियां अपनों की भुला
चलो   चलें   फिर   से  मुस्कराया जाए

रिश्तों  की नब्ज़ आजकल कमज़ोर है
हकीम के पास चलें इसे दिखाया जाए

चलो  माना  कि  गलतियां  हुईं  सो हुईं
अपनों से क्या ग़िला हाथ मिलाया जाए

मिटाने से नहीं मिटने  हथेली के निशान
मुमकिन  ही  नहीं उम्र भर छुपाया जाए

फासले इतने न बढ़ाना कभी ख़ुद से तू
समय सवाल करे उत्तर  न बताया जाए

इतना  नहीं  गिरना  कभी नज़रों से ए-दिल
आईने के सामने मुँह तक न दिखाया जाए

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
२७.०१.२०२५ ०६.०९ अपराह्न(४४९)


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