कविता-होरी पिय के संग..

 

कविता
होरी पिय के संग..

होरी  पिय के संग खेल रही गोरी,
होरी  होरी  होरी रंग रंगीली होरी।।
गोरे  गोरे  गाल  बचावत  फिरति कामिनी
पियकूँ रंग लगाय रिझावत हसति कामिनी

है प्रमुदित  प्रसन्न  गुलाल रंग पिचकारी,
चूमै गौर कपोल रगरि दे भरि भरि सारी।।
पकरि लई धरि दई कीच में करि बरजोरी,
होरी    पिय   के   संग    खेल  रही गोरी।।

रंग  गुलाल के भाग देखि पछतांय हुरंगें,
हुरियारिन मन मगन अंग भए रंग बिरंगे।।
भरयौ रगरग रंग करै चुप छुप चित-चोरी,
होरी   पिय   के  संग   खेल  रही  गोरी।।

भीग  गई शरमाइ गई निज अंग निहारति,
पिय करते बरजोर जोर करि रंगहि डारति।।
चढ़यौ प्रीति कौ रंग लजावै गोरी भोरी,
होरी   पिय   के  संग   खेल रही गोरी।।

रंग रंगीलौ यौवन भर कर आयौ फागुन,
भर भर कर उल्हास उमंगे लायौ फागुन।।
होरी होरी होरी होरी रंग रंगीली   होरी,
होरी   पिय   के  संग   खेल रही गोरी…

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१९.०२.२०२५ १०.३१ पूर्वाह्न(४५०वीं)


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