कविता-होरी में...✍️

 

मेरे सभी सम्मानित पाठकों को रंगोत्सव की 
❤️🌷हार्दिक शुभकामनाएं🌷❤️
कविता
होरी में…✍️✍️

जरै  घमंड द्वेष होरी में,
जरै झूठ कौ कुनबा झार।।
जरै निरंतर बढ़ती खाई,
जरै   दनुजता  भृष्टाचार।।

जरै    ईर्ष्या  जरै  बुराई,
महंगाई   झुक मानै  हार।।
बेकारी खाधान्न मुफ्त का,
दबे  कदम  छोड़ै  घर द्वार।।

बढ़ती खाई रिश्तों में नित,
घटें  दूरियां  पनपै प्यार।।
भाई भाई से न विलग हो,
रंग होली कौ कहै पुकार।।

बैरी मानवता के जरि जएँ,
जरि जइ बिनके पालनहार।।
जरै  घमंड  द्वेष  होली  में,
जरै  झूठ  कौ  कुनबा झार।।

होली  कहती   मैं हूँ  होली,
भूल  चलो  जो पीछे हो ली।।
प्रेमभाव की भरि पिचकारी,
सराबोर  कर  दो  नर   नार।।

गोरे गोरे गाल लाल करि,
मलौ प्रीति कौ रंग गुलाल।।
गोरी कूँ भरि अंक नेह सूँ
पकरि डारि करि डारौ लाल।।

नशा मुक्त रह कर होरी में,
सबकी बोलो जय जयकार।।
जरै घमंड द्वेष होली में,
जरै  झूठ  कौ कुनबा झार।।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
१३.०३.२०२५ १०.०८पूर्वाह्न(४५३)

होलिकादहन पर विशेष✍️🌷🌷✍️


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