🌷🌷अशआर🌷🌷
✍️दिल से✍️
छिड़ेगी जंग अब ऐसी
नहीं होगी कभी ऐसी
माफ़ियाँ उसे अब और नहीं
जो आदमी नहीं जो आदमी नहीं
कद को ग़र दुश्मन बौना समझे
बहुत ज़रुरी है दिखाना कद अपना
लहू की बूंद बूंद बूंद जवानी दौलत
माँ भारती के वास्ते सब कुछ निसार है
कदम ग़र बढ़ गए अपने एकबार आगे
फिर रोकना मुश्किल बहुत होता है यारो
ऐतबार उस पर नहीं करते अब हम
जो दो दो जुबाँ दो दो गले रखता हो
हैसियत नहीं अपनी कर्ज़ पूरा चुका पाएं
चुकाएंगे मगर जी भर चुकाएंगे चुकाएंगे
सरहद से आज फिर पैग़ाम आया है
कुचल दो काट दो नापाक ने सर उठाया है
✍️कवि✍️
शिव शंकर झा “शिव”
स्वतंत्र लेखक
०६.०५.२०२५ ०३.४८अपराह्न (४५६)