अशआर
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आईने के सामने चेहरा छुपाते हो
बड़े कमजोर हो यूँ लड़खड़ाते हो
मिरे दिल चल इक आशियां बनाया जाए
ज़रा सुकून से सुकून में नज़र आया जाए
बेशक़ खिलाफ हो सारा ज़माना ऐ दिल
दिल की सुन ऐ दिल मुस्कराया जाए
हार कर अपनों से बहुत कुछ पाया गया
फख्र है मिरे दिल वादा निभाया गया
उन्हें कामयाबियां मिलें रोज़ रोज़ नई नई
तिरा शुक्रिया मिरे रब मुझे आजमाया गया
बेवज़ह दर्द को यूँ संभाले रक्खा है
खुद को खुद ही दर्द के हवाले रक्खा है
सब हवा हवा है यक़ीनन हवा हवा है
मुस्करा मिरे दिल क्यूं दर्द पाले रक्खा है
ख़बर तो है अंधेरा रोज़ सिखाने आता है
वक्त बदलता है पल पल बताने आता है
फिर भी नशे में बेसुध आदमी मिला
वक्त वक्त पर आईना दिखाने आता है
शराफत ईमान वफ़ा रहम जुबान बाकी है
तभी तक इंसान बाकी है निशान बाकी है
हवाओं में इत्र सी महक फैलाता ज़रा चल
तुझमें जान बाकी है तभी पहचान बाकी है
ऐ दिल सच बोलने की कीमत चुकाता चल
ज़रा ज़रा गुनगुनाता चल मुस्कराता चल
छोड़ जाएगें अपने भी तुझे सरेराह यूँ ही
गले लगाता चल नज़र नज़र आता चल
बची हिम्मत नहीं है आईने के पास जाने की
हक़ीकत में हक़ीकत से नज़रें मिलाने की
गवाह भी है तिरे अंदर गुनहगार भी अंदर
आदत डाल ख़ुद को ख़ुद ब ख़ुद आजमाने की
कवि
शिव शंकर झा “शिव”
२५.०५.२०२५ ०५.५८ पूर्वाह्न(४५७)