ग़ज़ल
ये पालनहार हैं!!
ये नेता जी ग़ज़ब क़िरदार हैं
बिना जुबान के चेहरे हजार हैं
रौब रुआब बरक़रार रखने का नशा
बदलते रोज़ इसके वास्ते दरबार हैं
इन्हें बस इश्क़ कुरसी से चढाबे से
लुटेरे माफियाओं के ये पालनहार हैं
न सुनने का न कहने का असर इन पर
जुबां से पलट जाएं पट ये पल्टीमार हैं
फँसा दें उनको जो इनके लिए मरते रहे
सगे ये हो नहीं सकते मंझे फनकार हैं
अगर हो फायदा तो कायदा क्या चीज है
मिले मौका जड़ें चौका ये चौकीदार हैं
आबरू लुटती रहे या लूट लें ये ही अगर
बगबगे पहन कर दिखते ये इज्जतदार हैं
फाइलों को सूंघ कर अंदाज़ ये लेते लगा
किसे ठेका टेक दें ये असल ठेकेदार हैं
साहब बाबू मुलाज़िम और ये नेता रहे
घोंटते मिलके गले जनता के पैरोकार हैं
कवि
शिव शंकर झा “शिव“
स्वतंत्र लेखक
06.06.2026 05.31 सुबह (459)