शिव के दोहे ✍️✍️

 

शिव के दोहे

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कवी  शासनिक  हो रहे,गावें गीत मल्हार।
हाँ जी हाँ जी में लगे,सुबह शाम अखबार।।

बाबू  बैठा  खा  रहा,चढ़त चढ़ावा माल। 
हिस्सा साहब का नियत,जैजै गुरुघंटाल।।

धर्म कर्म के नाम पर, करते भ्रष्टाचार।
मन्दिर मस्जिद में करें, दोऊ बंटाधार।। 

यौवन के मद में भरी,फिरै बनाती रील। 
छोटे कपड़े नग्न तन,खोता जाता शील।। 

शिक्षालय धन के लिए,करते नव उत्पात। 
शासन प्रशासन मिले, कैसे  बनिहै बात।। 

ठेका ठेकेदार अरु, नेता  बाबू  चोर।
मिलके घोटाला करें,लाठी में है जोर।। 

निंदक साबुन मुफ्त के,साफ़ करें नित मैल। 
पथ में काँटे डालि कें,चलन सिखावत गैल।।
०१ ०७ २०२५ ०८ ३८ पूर्वाह्न
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दुष्ट मनुज अरु नाग से, दूरी रखें सुजान।
दोनों  की संगति  बुरी, हर  लेवें जे प्रान।। 
२४.०६.२०२५ ०२.४९ अपराह्न 
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रिश्तों   में   गड़बड़  बढ़ी, होते  चकनाचूर। 
अन्तर नहिं नर चतुष्पद,नीति नियम से दूर।।

पत्रकार  अखबार  का,  विज्ञापन भगवान।
स्वर विनके अनुरूप भा,अपना हो कल्यान।।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
कवि-शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक 
१३.०७.२०२५ ०६.४९ पूर्वाह्न(४६३) 






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