कोई लौटा दे मेरा बचपन सुहाना रे,
वह दगरे की धूल माटी मेड़ पर जाना रे,
बाबू जी की डांट लाठ मां जी का खाना रे,
कोई लौटा दे.......
छोटी छोटी बातों पर रूठ रोज जाना रे,
भाइयों का प्रेम नेह वहन को रुलाना रे,
बाबूजी का मेले से जलेबियों को लाना रे,
कोई लौटा दे...................
पोखर के पास बैठ भैंस को चराना रे,
रोज रोज चुपके से बम्बा में नहाना रे,
साइकिल से रोज दूर पढ़ने को जाना रे,
कोई लौटा दे....................
खेल कूद गिल्ली डंडा आरती का गाना रे,
सुबह शाम देर तक रेडियो का गाना रे,
कॉपियों के बीच में मोर पंख लाना रे,
कोई लौटा दे....................
और_क्या_लौटा दे.
डांट खा के भूल जाना अपनों के ताना रे,
साथ साथ सोना और खटिया पर खाना रे
बचपन सा सीधापन और फूट फूट रोना रे,
कोई लौटा दे....................
हड़िया का गरम दूध डर डर के पीना रे,
माताजी के नेहवश राजा सा जीना रे,
रोज रोज लड़ना और पल में भूल जाना रे,
कोई लौटा दे....................
बरगद,नीम छांव बीच जेठ माह सोना रे,
ताख़ी पर बना मेरी पुस्तकों का कोना रे,
दूध बूरा घी रबड़ी बरगद पात दोना रे,
कोई लौटा दे....................
और_क्या_लौटा_दे
गौरैया का चह चहाना आंगन में आना रे,
जेठ की दुपरिया में नदिया में नहाना रे,
गुरुजी की पाठशाला प्रार्थना का गाना रे,
कोई लौटा दे....
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शिव शंकर झा "शिव'
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२०.०२.२०२१
Jaldi hi safal ho jayenge aap
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