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हार कर फिर जीत लिख,
दुश्मन के आगे प्रीति लिख,
वेशक हों मुश्किलें भर भर,
चल डगर पर तू संभलकर,
इतिहास का अध्याय लिख,
अहसासों के नूतन रंग लिख
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दुश्मनों को धूल तू फांखने दे,
विपरीत चालें झांकने दे,
अरि के स्पंदन हांफने दे,
चल अडिग होकर सफर पर,
चल नया अध्याय लिख,
चल नया इतिहास लिख
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कब मिला है सरलता से मूल
मकसद
कब मिला है शांति से किसको
विजयपथ,
कब मिला है बिना जीते वीरता का
रथ
कब मिला है बिन चलें अपना प्यारा
मूलपथ -
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कब मिला है बिना मेहनत के
किसी को धन अपरिमित
कब मिला है बिना वीणावादिनी के
लेख लेखन बुद्धि मति
कब मिला है बिना बोले बोल का
मीठा स्वफल
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कब मिला है धर्म रत को शांतप्रिय
आनन्द जीवन
कब मिला है लोभ लालच में फंसे को
ज्ञान यौवन,
कब मिला है सत्य बचनों से किसी
को राजपद,
मगर फिर भी तू ये ठान के चल
मिल ही जायेगा तुझे हर बात का हल ------------------
नित नए शब्दों का आहवान करले,
आ नया कुछ खास करले
इतिहास का अध्याय लिख लें
कुछ अलग ही बात लिख ले
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शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
Very good
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