व्यंग्य
।।राजनीति के शकुनि।।
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राजनीति
का कालखण्ड
कैसे मौकापरस्त
धोखेबाज साथियों का
कूटजाल सा बना
शकुनि सी विकट चाल
हर ओर जाल
कुछ समय इधर रहा
कुछ समय उधर
भाषण दिया
बुराई की
दम घुटना बताया
अरे भाई जब दल में
दम घुट रही थी
तब भी मलाई खाई
और बने रहे
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जब दल
कमजोर सा लगा
तब माननीय दिए दगा
रक्त की उबाल देखते
उसी दल की
गलत नीतियों का
छाती पर चढ़ बिरोध करते
तब सच्चे नेता लगते
आपके रटे रटाये शब्द
अधिकारों का हनन
वंशवाद
एक नेतावाद
और मनचाहा दुर्वाद
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जब यहाँ भी गुरु शातिर मिला
फिर जाकर
उसी दल में जा मिला
ऐसा नेता मौकापरस्त
नहीं तो क्या
न इधर का
न उधर का
त्रिशंकु महाराज की तरह
अंतरिक्ष में दल
को लटकायेगा
ऐसा जनसेवक
जनता को रुलाएगा
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जयःहिन्द
वन्देमातरम
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
Kafi achcha prayas hai apne sahitya ko zinda rakhne ka .
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