परमस्नेही
समस्त सम्मानित पाठकों को
स्वतन्त्र लेखक शिव की ओर से दीपोत्सव की मंगल शुभकामनाएं
आपको यश,बल,मेधा,सम्रद्धि, उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त हो ऐसी कामना करते हैं।
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शेर( दिवाली )
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चिराग जलता रहा बेखौफ अंधेरे के बीच,
उसे अहसास था उम्र जाया नहीं गयी,
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हमें और तुम्हें बेखौफ रहना है दोस्तो,
खौफ के साये में इंसान नही जीते,
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इन चिरागों की शहादत जाया ना जाये दोस्त,
हमें सारी कायनात को उजाला परोसना है,
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जगमगाता जहाँ कितना खूबसूरत है आज,
उनसे सावधान रहो जो इन्हें रोशन नहीं चाहते,
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आजकल तारों की रोशनी शरमा गयी है हौसलों को देख,
उसे अहसास है इंसान दर्द में है मगर
मुस्कान जारी है,
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दियों की रोशनी में जगमगा रहा है अवध,
मेरे राम लौट आये हैं गुमान है हमें,
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इश्क ईमान चाहत बनी रहे सदा सदा,
आंधियों में रोशन चिराग से सीखा है,
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जलता रहा धू धू वह रोशनी बिखेरते हुए,
अरमान इतना था अंधेरा भगाना है मुझे,
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लडडू,बर्फी,खीर,मलाई और इश्क क्या
क्या है,
परोस दो तुम अदब से दीवाली आ गयी,
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अंधेरे की ख्वाहिश थी करूंगा राज सारी कायनात पर ताउम्र,
दिए जब जगमग हुए एकसाथ हिम्मत कर
हार उसकी हो गयी,
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मेरा हुक्म गुजारिश जो भी समझ आदमी खौफजदा,
उजाला बिखेरने के लिए शहादत तो देनी
होगी,
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शिव शंकर झा"शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
Mast hai
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