शेर(जमीन छोटी पड़ गयी!)

 


【जमीन छोटी पड़ गयी!】

सफर पर हम भी हैं बेखौफ और तुम भी,

चलो दिल मिला लें हाथ मिलाने की जगह,

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दिल नहीं चाहता तो हाथ मिलाना नहीं,

मुझे यूँ इस तरह हाथ मिलाना नागवार है,

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समय की दहलीज पर खड़ा हूँ सिर उठा,

गरजकर बोलता रहूंगा आखिरी सांस तक,

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उसे खबर लगी मेरी बुलंदियों की,

वह खून जलाता रहा कीमती रात भर,

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नकली हमदर्दी दोस्ती दिखाबे से गुरेज है,

तू क्यों अपनी सच्चाई छुपाने पर तुला है,

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गरीब की कंपकपाती रही ठंड से बोटी,

वह कुत्ते के मुंह से भी ले गया रोटी,

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दौलतें ही दौलतें इक ओर नजर आयीं,

दूसरी ओर आहें बेसुमार नजर आयीं,

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आग से खेलते खेलते ये याद आया,

इसी में तो सुपुर्द होना है एक दिन यारो,

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मुलाजिम ही गर मुलजिम बन जाये,

तब अवाम फरियाद कहां लाये,

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जमीन छोटी पड़ गयी गुनहगारों के लिए,

सियासी जमात के चहेते यारों के लिए,

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आख्या पर आख्या और जांच पर जांच,

सियासीसरपरस्त पर कहां आती है आंच,

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सन्नाटा हर ओर क्यों बरपा हुआ है,

सियासीसरपरस्ती का ये खेल लगता है,

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खिड़कियां,किबाड़,बक्से सब बोल रहे हैं,

परत दर परत सिस्टम की पोल खोल रहे है

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जमीन तो समतल एकसार दिखती है हमें,

कुछ जगह ये गिरफ्त में खौफजदा तो नहीं,

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जमीन अब चिल्लाने को है शायद तैयार,

अब इंसान की फितरत बदल गयी है यार,

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आखिरी सांस तक पनाह नहीं मांगना,

मौत भी चकमें में रहे पाला किससे पड़ा,

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आदमी ही आदमी हर तरफ दिखे,

कुछ लालच औऱ दौलत की खातिर बिके,

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इंसान शक्ल सूरत से बहुत खूबसूरत है,

काले कारनामों पर गौर करें तो बदसूरत है,

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शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२८.१२.२०२१ ११.५४ रात्रि

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