कविता..चलती तोपें..

 


कविता

..चलती तोपें..

……...

कहीं पर होते गीत जश्न के कहीं पर 

चीख पुकार,

कहीं बंदूकें कहीं मिसाइल कहीं युद्ध 

की भीषण मार,

धूं धूं जलते भवन कँगूरे मची भयंकर

हाहाकार,

उजड़े बस्ती मिटती हस्ती लुटते गॉव 

गली घर द्वार,

………...

उठे चिंगारी मारामारी कटते अंग रुधिर 

बहे धार,

मातृ भूमि के खातिर अर्पित रुके झुके 

ना माने हार,

सीना चौड़ा मस्तक ऊंचा डटा समर 

भट वीर महान, 

चलती तोपें फटते गोले चहुदिश फैली

भीषण रार,

………..

कटते लड़ते गिरते उठते बहे रक्त की 

ताजी धार,

जंग भयंकर उड़ते बंकर होता तीक्ष्ण 

कठोर प्रहार,

शांति समर से कहाँ मिली है 'है"कोई

प्रमाण,

मिटे मनुजता बड़े दनुजता जीत मिले

या हार,

………..

युद्ध के बाद का मंजर बड़ा वीभत्स 

होता है,

जिंदगी दर्द से तर हो बुढ़ापा सिसक

रोता है,

भयंकर करुण क्रंदन वेदना मर्म का

भेदन, 

पिता की आश में बच्चे खड़े है द्वार

पर अनमन,

………..

समाधान है नहीं युद्ध गर जान सको 

तो जानो,

शांति दूत बन कर आ जाओ बात बुद्ध 

की मानो,

बचे मनुजता हो प्रसन्नता उर के अंदर

झांको,

शांति युद्ध से नहीं मिलेगी यक्ष प्रश्न

पहचानो?

यह यक्ष प्रश्न पहचानो?

ज्ञान बुद्ध का मानो?

………..

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२७.०२.२०२२ ११.११ अपराह्न

………..















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